पिछले साल मेरी भांजी की पहली पोस्टिंग मेरठ
में हुई। बड़ी दीदी और जीजाजी को झारखंड से मेरठ आना था। किसी भी ट्रेन में
रिजर्वेशन नहीं मिला, फिर उन लोगों ने कार से ही लंबी दूरी तय करने का फैसला किया।
आपको लग रहा होगा कि ये बातें मैं क्यों कर रहा हूं। दरअसल दिल्ली में बढ़ते
प्रदूषण को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार को फटकार लगाई थी। इसके
बाद दिल्ली सरकार ने आनन-फानन में ऑड-ईवन का फॉर्मूला दे दिया। पहली जनवरी से इसका
ट्रायल है। कोर्ट की टिप्पणी के बाद सरकार ने फॉर्मूला तो दे दिया, लेकिन
इसके लिए तैयारी करना जरूरी नहीं समझा। दिल्ली में जिस रफ्तार से गाडिय़ों की
संख्या बढ़ रही हैं उसे देखते हुए नहीं लगता कि यह कदम कारगर होगा। विदेशों में भी
यह फॉर्मूला कारगर नहीं रहा है। विदेशों में जहां इसे लागू किया गया, वहां
लोगों ने एक से अधिक गाडिय़ां खरीदनी शुरू कर दीं। प्रदूषण की समस्या सिर्फ दिल्ली
की ही नहीं है, बल्कि आगरा, कानपुर, पटना जैसे शहरों शहरों में भी स्थिति चिंताजनक है। प्रदूषण का तो ये स्तर
है कि कुछ सालों में देश में हवा भी बिकती नजर आएंगी। वाटर प्यूरीफायर की तरह एयर
प्यूरीफायर के विज्ञापण तो शुरू हो ही चुके हैं।
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ऑड ईवन फॉर्मूला कितना कारगर रहेगा? चित्र गूगल से साभार |
पर्यावरण पर बढ़ते खतरों के बीच एक अच्छी बात
यह है कि अब इस पर चर्चा हो रही है। देश की अदालत भी इस मुद्दे पर सख्त है। यूपी
में पॉलिथीन पर बैन लगा दिया गया है और अब एनसीआर में डीजल वाले ऑटो-टैक्सी आदि पर
भी बैन लगने वाली है। हालांकि इस तरह की पहल सराहनीय है, लेकिन सवाल है कि यह कहां
तक सफल रहेगा।
दूसरी बात ये भी है कि केवल पॉलिथीन और डीजल
के ऑटो-टैक्सी पर बैन लगाने से काम नहीं चलेगा। बैन किसी समस्या का बेहतर समाधान
साबित नहीं होगा। इसके लिए बेहतर विकल्प भी देना होगा और यह जिम्मेदारी राज्य और
केंद्र दोनों सरकारों की है। कहीं दूसरे शहर जाना हो तो लोगों को ट्रेन में
रिजर्वेशन नहीं मिलता। मजबूरन लोगों को प्राइवेट व्हीकल का इस्तेमाल करना पड़ता है।
अब अगर डीजल के ऑटो, टैक्सी और बस को बंद कर दिया जाए तो लोगों को कितनी परेशानियां होंगी। दिल्ली
की बात करें तो कहीं जाने के लिए दस बार सोचना पड़ता है। बस से जाएं तो सड़क पर जम
में रेंगती रहती हैं और मेट्रो से जाएं तो इसमें पैर रखने का भी जगह नहीं होता।
ट्रांसपोर्ट सिस्टम की तरह देश के अधिकांश शहरों में बिजली की स्थिति भी अच्छी
नहीं है। शहरों में जेनरेटर का इस्तेमाल बड़े पैमाने पर होता है।
केवल हवा की ही नहीं देश में नदियों की स्थिति
भी अच्छी नहीं है। चाहे गंगा-यमुना हो कोई स्थानीय नदी सभी
में जल प्रदूषण खतरनाक स्तर पर जा चुका है। केंद्र सरकार ने गंगा को स्वच्छ करने
के लिए नमामि गंगे प्रोजेक्ट तो चलाया,
लेकिन जिस गति से यह अभियान चल रहा है उससे इसके सफल
होने की संभावना कम ही दिखती है। जब नदियों में नदियों का पानी ही नहीं रहेगा तो
साफ किसे करेंगे? प्रकृति के छेड़छाड़ का परिणाम हमें केदारनाथ, श्रीनगर
और चेन्नई बाढ़ के रूप में देख चुके हैं। ऐसे संकट अब कम अंतराल पर ही देखने को
मिल रहे हैं, लेकिन इससे सबक नहीं लिया जा रहा है। अब समय आ गया है कि फैसला लिया जाए कि
विकास और पर्यावरण पर किसे और कितनी तरजीह दी जाए।
इन विकल्पों पर भी विचार किया जा सकता है
- सस्ता और सुलभ ट्रांसपोर्ट सिस्टम हो। छोटे शहरों तक मेट्रो और रैपीड रेल
पहुंचे।
- ट्रेनों की रफ्तार बढ़े और यह टाइम पर चलें। केवल राजधानी-शताब्दी ही नहीं
जनशताब्दी और जनसाधारण जैसी ट्रेनों को भी प्रमुखता दी जाए। अगर यात्रा अवधि कम
होगी तो लोग बैठ कर भी सफर कर सकेंगें और ट्रेनों में रिजर्वेशन की मारामारी कम
होगी।
- शहर में पार्किंग की बेहतर व्यवस्था हो।
- छुट्टियों का दिन और ऑफिस का टाइम अलग-अलग हो, जिससे सड़कों पर एक ही समय
गाड़ियों का बोझ न पड़े। वैसे भी रविवार की छुट्टी अंग्रेजों के जमाने का है। अब
24*7
वर्क कल्चर का जमाना है। इससे एक और फायदा होगा कि किसी भी काम को करवाने के लिए
ऑफिस से छुट्टी नहीं लेगी होगी। अपने छुट्टी के मुताबिक काम करवाया जा सकेगा।
- दो गाड़ियां रखने पर टैक्स लगे।
- भीड़भाड़ वाली जगहों पर केवल ई बस या ई रिक्शा चले।
- नदियों को साफ रखना है तो नदियों को बांधना बंद करना होगा। भले ही इससे जल
विद्युत प्रोजेक्ट बंद करना पड़े। हम इसके लिए सौर ऊर्जा और पवन ऊर्जा को बढ़ावा
दे सकते हैं।
- हवा को साफ रखने के लिए कूड़े जलाने पर सख्ती से बैन लगे। साथ ही आतिशबाजी
पर भी बैन लगे।
- फ्लड लाइट्स में खेले जाने वाले स्पोर्ट्स इवेंट भी बंद किए जाएं। देश में
बिजली की कमी को देखते इसे अपराध कहें तो ज्यादा नहीं होगा।