हमारी ट्रेन जब इलाहाबाद जंक्शन पहुंची,
रात
के ढाई बजे थे. ट्रेन चार घंटे लेट थी. बाहर
बारिश हुई थी. मौसम के खराब रहने की संभावना थी. डब्बे से बाहर
निकला तो वही प्लेटफॉर्म था जहां मौनी अमावस्या के दिन हादसा हुआ था. सामने एक टूटा-फूटा ओवरब्रिज. मेरे मित्र ने बताया कि इसी पर भगदड़
मची थी. किसी अनिष्ठ की संभावना मन में चलने
लगी. इससे पहले मौनी अमावस्या के दिन इलाहाबाद जाने
का प्रोग्राम किसी वजह से कैंसिल हो चुका था और इस बार भी कैंसिल
होते-होते बचा था. वहां जाने से पहले भी कुछ ऐसी घटनाएं हो चुकी थीं, जिससे मन में यह शंका घर कर आई थी कि कुंभ
यात्रा सफल हो पाएगी या नहीं. कहीं
हॉलीवुड मूवी फाइनल डेस्टीनेशन की तरह तो नहीं कि एक बार मौत से बचे दूसरी बार मौत वहीं खींच लाई है.
ट्रेन लेट हो गई
हमें इलाहाबाद में एक परिचित के यहां जाना था जो झूंसी इलाके में रहते
हैं. ट्रेन लेट हो गई थी, इसलिए
वो स्टेशन नहीं आए थे और इतनी रात गए वहां जाना भी
ठीक नहीं था. हमने कुछ घंटे प्लेटफॉर्म पर ही बीताने का फैसला किया. वहां पुलिस और जवान मुस्तैदी से तैनात थे. प्लेटफॉर्म पर जहां-तहां
तीर्थ यात्री सोए हुए थे. वहां बैठने की भी
मुश्किल से जगह मिली. सुबह पांच बजे हम झूंसी के लिए
निकले. हमें सिटी का आइडिया नहीं था. कोई ऑटो वहां के लिए नहीं
मिल रहा था. रिजर्व में चार सौ रुपये तक की मांग हो रही थी. हमने रिक्शा किया, जिसने दो सौ रुपये वसूले.
जगमगाता कुंभ
गंगा पुल से गुजरते वक्त वहां का नजार विहंगम था. दोनों छोर पर जहां तक
नजर जा सकती थी वहां जगमगाता कुंभ क्षेत्र नजर
आ रहा था. अलग-अलग अखाड़ों और साधु-संन्यासियों
के टेंट लगे थे. कई जगह टेंट उखड़ भी रहे थे, जिससे लग रहा था कुंभ अपने चरम पर पहुंच के अब ढलान की ओर है. परिचित के घर
फ्रेश होकर हम लोग स्नान के लिए निकले.
रास्ते में कुछ देर के लिए बारिश भी शुरू हुई,
लेकिन
फिर मौसम साफ हो गया. चप्पे-चप्पे पर सुरक्षाकर्मी तैनात दिखे. लेकिन सिक्योरिटी चेक करने के लिए कोई व्यवस्था नहीं दिखी. मन में
आया अगर कोई आतंकवादी घुस आया तो क्या होगा?
चेहरे पर मुस्कुराहट
संगम
पर गंदगी की वजह लोग भी थे जो कहीं भी थूक रहे थे या कहीं भी अपना प्रेशर रीलिज कर
रहे थे. लोगों को भी अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी कि वो पुण्य कमाने आए हैं ना कि
पाप बटोरने. संगम तट पर स्नान किया तो पानी में पूजा के
फूल, दीये, नारियल आदि तैर रहे थे. किनारे
कोई पूजा कर दीया और अगरबत्ती जलाकर छोड़ गया था तो कोई श्राद्धकर्म कर अन्न बिखेर गया था. कुछ विदेशी भी दिखे जो वहीं स्नान कर भारतीय संस्कृति के रंग में रंगे दिखे. उस भीड़ और गंदगी के बावजूद उनके
चेहरे पर मुस्कुराहट थी. महिलाओं के लिए कपड़े
चेंज करने का वहां कोई इंतजाम नहीं था. लोग ग्रुप
में आते कोई नहाने जाता तो कोई सामान की रखवाली करता, फिर वहीं कपड़े बदलना और कपड़े सुखाना इससे वहां अनावश्यक भीड़ इकट्ठा हो
रही थी. स्नान
के बाद हनुमान जी के दर्शन किया. कहते है कि यहां हनुमान जी विश्राम करते हैं. यहां
भी भीड़ ज्यादा थी. न तो सामान रखने का कोई प्रबंध था और न ही चप्पल रखने का. लोग
मूर्ति पर फूल और पैसे फेंक रहे थे जिससे हनुमान जी की प्रतिमा ढंक गई थी. मन में
आया कि लोग उन्हें चैन से सोने भी नहीं देते. कुंभ क्षेत्र का विस्तार इतना अधिक
है कि वहां से लौटने में हमें चार घंटे लग गए और शायद यही वजह है कि करोड़ो लोग उस
एरिया में यूं ही समा जाते हैं.
पुलिस की बैरिकेटिंग
शाम
में एक बार फिर हम कुछ मंदिरों के दर्शन के लिए निकले
जो कुंभ क्षेत्र के आसपास ही थे. लेकिन न तो कोई
ऑटो मिल रहा था और रिक्शे वाले भी दो किलोमीटर के सौ रुपये मांग
रहे थे. हम पैदल ही गए. वेणी माधव, नरसिंह और अलोपी देवी का दर्शन किया. ऑटो या रिक्शा नहीं मिलने के कारण हमलोग ललिता देवी के दर्शन
नहीं कर पाए. फिर दारागंज की एक गली में हमलोगों ने इलाहाबाद की कचौड़ी सब्जी,
इलाहाबादी
समोसे का लुत्फ उठाया, जो लाजवाब था.
दुकानदार का पूरा परिवार कचौड़ी, समोसा और लौंगलता बनाने में लगा था. अगले दिन
माघी पूर्णिमा का प्रमुख स्नान था. शाम
से पुलिस की बैरिकेटिंग शुरू हो गई थी. पता चला कि रात से ही
वाहनों की एंट्री बंद हो जाएगी. हमें सुबह स्नान कर दिल्ली के लिए ट्रेन पकडऩी थी.
लौटकर राहत
सुबह
हम लोग छह बजे स्नान के लिए निकले. नहाकर निकलने में
नौ बज चुके थे. मुझे दिल्ली के लिए नार्थ ईस्ट या
सीमांचल ट्रेन पकडऩी थी. रिजर्वेशन नहीं था. स्टेशन तक जाना बड़ा
मुश्किल लग रहा था. सडक़ों पर पैर रखने की भी जगह नहीं थी. एक रिक्शा मिला वो भी
सिर्फ गंगा का पुल पार करने के सौ रुपये लिए. जनसैलाब सड़कों पर रेंग रहा था. आने
जाने का कोई साधन नजर नहीं आ रहा था. थोड़ा टेंशन होने लगा.
खुद को कोसने भी लगा कि क्यों इस दिन आया. पहले दिन से ही बहुत पदयात्रा हो चुकी थी, इसलिए और दस किलोमीटर पैदल चलने की
स्थिति में नहीं थे. कानपुर के लिए बस दिखी हमने स्टेशन
जाने का फैसला टाला और बस से कानपुर निकल गए. कानपुर
पहुंचकर राहत मिली. वहां से ट्रेन से हम अपने साथी के संग सकुशल
दिल्ली लौट आए.
कुंभ जाने से पहले
कुंभ के लिए जाने से पहले कई निगेटिव बातें सुनने को मिल रही थी. जैसे
गंगा का पानी नहाने लायक नहीं है. वहां नहाने
से स्कीन डिजीज हो सकती है. वहां महामारी फैलने
का खतरा है, कुछ हादसे भी हो चुके थे, कई
लोग वहां जाने का प्रोग्र्राम कैंसिल कर चुके थे. लेकिन
उस अनुभूति को जीने की इच्छा थी. आखिर बारह वर्ष
के अंतराल पर आयोजन होता है और देश-विदेश से लोग आते हैं. इस
ग्रेट ओकेजन को तो फील करना ही चाहिए.
अगली बार मिस ना करें
सरकार और
प्रशासन व्यवस्था को और बेहतर करे. आखिर कुंभ से सिर्फ एक राज्य ही नहीं बल्कि देश की छवि देश और दुनिया में बनती या बिगड़ती है. अगर
सरकार कुंभ में सही व्यवस्था नहीं कर सकती है तो मेले का आयोजन ही न करे. लो आखिर
क्यों इतने विज्ञापण देती है. कुंभ क्षेत्र में
फूल-पत्ती, नारियल, पूजा या
श्राद्धकर्म पर बैन लगाना चाहिए. कुंभ के दौरान
केवल स्नान ही करने की इजाजत हो, जिससे गंदगी ना फैले. साफ अस्थाई शौचालय की प्रॉपर व्यवस्था हो. लोगों को भी समझना होगा वो वहां अच्छे उद्देश्य से गए हैं वहां गंदगी ना फैलाएं, महिलाओं के लिए
कपड़े बदलने के लिए व्यवस्था होनी चाहिए. पब्लिक
ट्रांसपोर्ट की प्रॉपर व्यवस्था होनी चाहिए. भले ही वहां थोड़ी बहुत परेशानी हुई
हो लेकिन कुंभ का अनुभव लेना अच्छा लगा. आखिर तीर्थयात्रा में थोड़ी परेशानी तो
होती ही है. इलाहाबाद के महाकुंभ 2013 का तो समापन हो गया. अब नासिक और उज्जैन का
बारी है. अगर आपने इस बार मिस कर दिया तो अगली बार ना करे.