महाराष्ट्र भयंकर सूखे की चपेट में है। हालात इतने बिगड़े हैं कि लोग पानी के लिए अपनी जान भी गंवा रहे हैं। कुएं में जान जोखिम में डालकर पानी भरते महिलाओं और।बच्चों की तस्वीरें झकझोर देती हैं। ये सिर्फ महाराष्ट्र की ही बात नहीं है, देश के कई हिस्सों की यही कहानी है। भूजल स्तर लगातार गिरता जा रहा है। मेरे गांव में घर के अंदर का कुआं जिसे पंप के जरिए नहीं सुखाया जा सकता था, अब बरसात में भी सूखा रहता है।
महाराष्ट्र में सूखे को लेकर सरकार ने आईपीएल मैच में पानी देने से इनकार कर दिया। मामला कोर्ट तक गया। आखिरकार आईपीएल मैच महाराष्ट्र से बाहर कर दिया गया। माना आईपीएल से करोड़ों रुपये का राजस्व प्राप्त होता है, लेकिन क्या इसके लिए अमूल्य संसाधनों को बर्बाद किया जा सकता है? सिर्फ पानी ही क्यों डे-नाइट मैच में बिजली की भी बर्बादी होती है।
सुना है एक उद्योगपति विदेश गए थे, वहां उन्होंने जरुरत से ज्यादा खाने का ऑर्डर कर दिया, वो उतना खाना खा नहीं पाए। जब उन्हें एक बुजुर्ग महिला ने टोका तो उन्होंने कहा कि मैंने इसकी कीमत चुकाई है। महिला ने पुलिस को फोन किया और उन्हें जुर्माना देने पड़ा। ठीक उसी तरह अगर कोई पानी या बिजली की ऊंची कीमत अदा करने की क्षमता रखता है तो क्या उसे इसकी बर्बादी करने का हक मिल जाता है? देश के कई इलाकों में जब लोगों को पीने का पानी नहीं मिल पाता और लोग अंधेरे में जीने को मजबूर हैं तो ऐसी बर्बादी अपराध के समान है।
नेताओं के साथ लोगों की संवेदनशीलता देखिए। सूखे का सर्वे करने गए एक मंत्री के लिए हैलिपैड बनाने के लिए हजारों लीटर पानी बर्बाद कर दिया जाता है। कोई सूखे की सेल्फी ले रहा है। मेरठ में पिछले दिनों हजारों लीटर गंगाजल नाले में बहा दिया या, वजह सिर्फ क्रेडिट लेने की होड़। वहीं जनता भी निश्चिंत है। वो आज में जीती है, हमें इससे क्या लेना हमारे पास तो पानी है, कल की सोचेंगे कल को। मेरठ से दिल्ली आते समय कई जगहों पर लोग हाथों में पाइप लिए सड़क पर पानी छिड़कते मिल गए।
सूखे की चर्चा के बीच अब फसलों के पैटर्न पर चर्चा होने लगी है। किसी का कहना है कि महाराष्ट्र में गन्ने का फसल उगाना बंद कर देना चाहिए तो कोई कहता है कि धान के फसल को बहुत अधिक पानी की जरुरत होती है। इसे भारत में बंद कर देना चाहिए। मैं कोई एक्सपर्ट नहीं हूं, लेकिन मेरा मानना है कि प्रकृति ने हर क्षेत्र मौसम के मुताबिक पेड़-पौधे दिए हैं। उससे छेड़छाड़ नहीं करना चाहिए। अगर किसी क्षेत्र के लिए कोई फसल उपयुक्त नहीं है तो उसे वहां नहीं उगाना चाहिए, लेकिन अगर उपयुक्त है तो उसे बंद भी नहीं करना चाहिए। जैसे यूकेलिप्टस का पेड़ सभी जगह लगाए जा रहे हैं. दलदली इलाके के इस पौधे को प्रकृति का आतंकवादी कहा जाता है, क्योंकि यह पानी को तेजी से सोख लेता है, खुद तो तेजी से बढ़ता है, लेकिन आस-पास की जमीन को बंजर बना देता है, लेकिन इसके बाद भी फलदार वृक्षों पर यहां इसे तरजीह दी जा रही है। उत्तराखंड के जंगलों में आग लगी है। वजह वही संवेदनहीनता। फरवरी में आग लगी, लेकिन जिम्मेदार लोग सोते रहे। आग का कारण चीड़ के पेड़, जिन्हें कभी अंग्रेजों ने लगाया था। ये पेड़ भी प्रकृति के आतंकवादी हैं। ये जैव विविधता के लिए खतरा हैं, फिर भी इस ओर ध्यान नहीं दिया गया।
चाहे सूखे की समस्या हो या तेंदुए का शहर में घुसना, या उत्तराखंड के जंगलों की आग इन्हें एक-साथ देखने की जरुरत है। ये प्रकृति से खिलवाड़ और हमारी संवेदनहीनता के नतीजे हैं। यह एक आहट है। इस आहट को गौर से सुनिए। कहीं देर न हो जाए। आज भले ही हम सुरक्षित हैं, लेकिन याद रखिए इतिहास सब का लिखा जाता है। आज कोई और भुगत रहा है। कल हमारी बारी हो सकती है।