Saturday, October 30, 2010

डर के साथ ही जीत है


पिछले दिनों की बात है मेरे ऑफिस की दीवार पर कई टीवी चैनल टंगे हैं जिनपर अलग-अलग न्यूज चैनल दिखते रहते हैं। टीवी पर कुछ यूं खबर चल रही थी, पारे ने परेशान किया, बारिश ने किया बेहाल अब दिल्ली वालो हो जाओ सावधान ! जाड़ा जमा देगा, जाड़ा ले लेगा आपकी जान। मौसम मिलावट आदि से संबंधित कुछ इसी तरह की खबर आपको न्यूज चैनल खोलते ही डराने के लिए तैयार मिलते हैं। इनमें अनुप्राश और अलंकार के प्रयोग जमकर किए जाते हैं। एक ही बात को कई तरह से कहा जाता है। कुछ प्रोग्राम के आधार वाक्य ही हैं "चैन से सोना है तो जाग जाओ। जाहिर है कि डर बिकता है।

आखिर हम न्यूज क्यों देखते हैं? पेपर क्यों पढ़ते हैं? इसकी वजह है हमारे भीतर का डर जिसे 'फीयर ऑफ अननोन' कहते हैं। मतलब हमें हमेशा अज्ञात से ही एक खतरा महसूस होता है और हम किसी भी संभावित खतरे से बचाव के लिए हमेशा अपडेट रहना चाहते हैं ताकि उससे बचाव के लिए हर संभव उपाय कर सकें। यही कारण है कि डर बिकता है।
आजकल टीवी पर डराने वाले प्रोग्रामों की बाढ़ सी आ गई है जो जितना डराएगा वो उतना टीआरपी पाएगा और जो जितना टीआरपी पाएगा वो उतना ही अधिक विज्ञापन बटोरेगा। आजकल खबरों की परिभाषा टीआरपी तय करते हैं। जो भी बिक जाए वो खबर है। जितना बड़ा डर उतनी बड़ी खबर क्योंकि डर सबको लगता है और डर की टीआरपी होती है। इसलिए जब शनि और मंगल ग्रह की स्थिति एक साथ रहती है तो यह बड़ी खबर बनती है और इस पर घंटे भर का प्रोग्राम बनता है।
अगर गौर करें तो पाएंगे कि न्यूज चैनल नकारात्मक बातें अधिक दिखाते हैं। चाहे 2012 में धरती का अंत की खबर हो या महामशीन से महाविनाश की खबर हो या पड़ोसी देश से खतरे की जरा भी अंदेशा हो हर खबर में आपको नकारात्मक पक्ष साफ दिखेगा। खेल में जब टीम मैदान मार रही हो तब की बात को छोड़ दें वरना हार मिलते ही संभल जाओ धोनी, धोनी के धुरंघर धाराशाही, धुल गए धोनी जैसी स्टोरी चलने में जरा भी देर नहीं लगती। आज के दौर में मीडिया की विश्वसनीयता भले ही कम हुई हो लेकिन इसका समाज पर अभी भी बड़ा प्रभाव है। यही कारण है कि हम भले ही मीडिया की हंसी उड़ाते हैं लेकिन ज्योतिष और धर्म-कर्म के प्रोग्राम देखना नहीं भूलते। महामशीन से महाविनाश की खबर हो तो माथे पर चिंता की लकीरें साफ हो जाती हैं। टीवी चैनल यह तो दिखाते हैं कि जानलेवा है लौकी, जहरीली लौकी से जरा संभल कर, खून के आंसू रूलाएगी यह लौकी लेकिन वह किसानों की समस्या को दिखलाना भूल जाते हैं। जब महामशीन को चला कर ब्रह्मांड की उत्पत्ति के रहस्य को जानने का प्रयास किया जाता है तो इसके सकारात्मक पक्ष को नजरअंदाज कर दिया जाता है। क्योंकि दर्शकों को अगर सब कुछ अच्छा ही दिखाया जाए और उसे फील गुड कराया जाए तो वह तो चैन की नींद सो जाएगा फिर न्यूज चैनल कौन देखेगा। इसलिए न्यूज चैनलों का यही मूल मंत्र है 'डर के साथ ही जीत है'।

4 comments:

  1. डर के साथ ही जीत है। यही है आज का मूल मंत्र। मन में डर बसा होना चाहिए बस यही है जीवन का राज। अच्‍छा आलेख है।

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  2. जिस बात के प्रति आप आगाह कर रहे हैं वह समाचारों के व्यापार का लाभसूत्र है. मैंने पिछले दो वर्ष में दो घंटे से अधिक टीवी नहीं देखा. मुझे लाभ ही हुआ. नुकसान तो बिल्कुल भी नहीं. एक बात यहाँ शेयर कर रहा हूँ कि वैज्ञानिक मत के अनुसार मानव मस्तिष्क की डर सहने की क्षमता का अधिक दोहन हानिकारक है. इतनी अच्छी पोस्ट के लिए धन्यवाद.
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  3. भाई,
    हम तो जब कुछ ना मिले तो खिल खिला कर हंसने के लिए देखते हैं न्यूज़ चैनल!
    हा हा हा....
    आशीष
    ---
    पहला ख़ुमार और फिर उतरा बुखार!!!

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  4. मिडिया के एक नए रूप से परिचय कराया आपने। अच्छा लगा।

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