Saturday, June 26, 2010

बात आधी आबादी की

जब हम टी. वी. ऑन करते हैं तो न्यूज़ चैनलों पर सोनिया गाँधी और हिलेरी क्लिंटन को हाथ मिलते हुए देखते हैं या सायना नेहवाल को सिंगापुर ओपन जीत कर वर्ल्ड रैंकिंग में तीसरे पायदान पर पहुँचते हुए देखते हैं। जब हम चैनल बदलते हैं तो एक दूसरी खबर आ रही होती है ' दहेज़ के नाम पर विवाहिता की हत्या ' या युवती के संग गैंग रेप कर जिन्दा जलाया।' दोनों ही खबरें हमारे देश के वर्तमान की सच्चाई है। अब सवाल उठता है कि महिला सशक्तिकरण कहाँ है? और क्या यह समस्या इंडिया-भारत गैप को बयां करता है ? लोग अक्सर अपने पुरातन का गुणगान करते हैं। यह सही है कि वैदिक समाज उदार था। इस काल में अनेक विदुषी महिलायें हुईं, जिन्होंने वैदिक मन्त्रों की रचना की। उन्हें ऋषि की उपाधि दी गई। लेकिन क्या महिलायें पूर्ण रूप से सशक्त हो पायीं? वृहदारण्यकोपनिषद में याज्ञवल्क्य और गार्गी की कथा है। राजा जनक के दरबार में शास्त्रार्थ होता है। याज्ञवल्क्य सभी पंडितों को हरा देते हैं। उसी समय गार्गी उन्हें चुनौती देती है। याज्ञवल्क्य उसे डांट कर चुप करा देते हैं कि चुप रहो स्त्रियों को बहस नहीं करना चाहिए। एक और विदुषी महिला की कहानी सुनिए। अगस्त्य ऋषि ने अपने शिष्य को अपनी पत्नी लोपामुद्रा को उत्तर भारत से लाने के लिए भेजा। साथ ही हिदायत भी दी कि दोनों के बीच न्यूनतम दूरी बनाये रखी जाये। लेकिन लौटते समय वैगई नदी की बाढ़ में लोपामुद्रा डूबने लगीं तो शिष्य ने उन्हें बचाया। यह बात जब अगस्तय ऋषि को मालूम पड़ी तो उन्होंने दोनों को शाप दे दिया। यह तो वैदिक काल की तस्वीर है। आगे चलकर समाज में उनकी स्थिति गिरती ही चली गयी।
एक तरफ तो कहा गया कि 'यत्र नार्यन्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता' वहीँ दूसरी और कहाँ गया कि स्त्रियों को बचपन में अपने पिता पर, शादी के बाद पति पर और बुढ़ापे में बेटे पर आश्रित रहना चाहिए। सल्तनत काल कि पहली महिला शासक रजिया के पतन का भी कारण उसका महिला होना ही था।
महिला सशक्तिकरण से आशय है महिलाओं का निर्णय लेने कि प्रक्रिया में भाग लेना। चाहे पंचायती स्तर पर हो या पार्लियामेंट के स्तर पर हो। महिलायें तभी सशक्त हो सकती हैं जब उन्हें निर्णय तंत्र में शामिल किया जाय।
महिलाओं के दुःख -दर्द को एक महिला ही समझ सकती हैं। महिला जब स्वस्थ, शिक्षित और सबल होंगी तभी परिवार और समाज भी उन्नति करेगा। 'दुनिया कि आधी आबादी' को निर्णय तंत्र में भागीदार बना कर हम न सिर्फ उनकी समस्याओं का समाधान कर सकते हैं, बल्कि इससे समाज को भी एक दिशा मिल सकती है।
अभी पंचायतों में महिलाओं को आरक्षण दिया है और संसद में प्रक्रिया के स्तर पर है।महिला आरक्षण के विरोधी कहते हैं कि इससे केवल उच्च वर्ग कि महिलाओं को ही फायदा होगा। फिर कुछ लोग आरक्षण के अन्दर आरक्षण कि मांग करते हैं। महिलाओं को छोटे-छोटे वर्ग में बांटना सही नहीं है।पहले महिलाओं को जागरूक बनाना चाहिए और इस प्रक्रिया में जो भी आगे आती हैं उनका स्वागत करना चाहिए।
हम अपने को सभ्य कहते हैं, लेकिन हमें तब तक सभ्य कहलाने का हक़ नहीं है जब तक हम महिलाओं के प्रति पक्षपात बंद नहीं करते और परिवार और समाज में उन्ही बराबरी का दर्जा नहीं देते हैं। बस हमें अपनी सोंच बदलने कि जरूरत है. आइये इस दिशा में पहल करें।

2 comments:

  1. mahila sashaktikaran ek rajnitik shabt ban kar rah gaya hai.sahi mayne me mahilao ki dasha koi bhi sudharna nahi chahta. is patriarchial samaj me log unki takat se darte hai isliye unko aage badhane nahi de rahe hai.abhi to ghunghat me sirf panchayat hai.sasad ko bhi yahi banane ki koshish hai.tabhi to isme bhi rajniti ho rahi hai.

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  2. blog jagat me apka hardik swagt hai ,mahila sashktikrn to matr ek shabd matr bnkr rah gaya aur sabhi us pr apne vichar rakhne ko atur dikhai padte hai ,panchayat aur sansd me jagh milne se aam aurat ki halat sudhregi ye sochne ka vishay hai ........
    achhi prastuti hai ........
    ise jari rakhe ........

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