Sunday, June 27, 2010

मोहब्बत, मूंछ और मर्डर




पिछले साल एक गाना आया था, "ये दिल्ली है मेरी यार, बस इश्क मोहब्बत, प्यार।" कोरस था, "कैसी है दिवानों की दिल्ली...दिल्ली।" दिल्ली में इन दिनों जो कुछ भी हो रहा है अगर यूं ही चलता रहा तो न तो दिल्ली दिवानो के लिए रह जाएगी और न दिल्ली में दिवाने ही बचेंगे।
दिलवालों की दिल्ली में दिल लगाने की सजा मौत है। पिछले सफ्ताह की प्रेमियों की हत्याएं तो यही दर्शाती है। पहले भी कई इलाकों में ऐसी हत्याएं हो चुकी हैं और आगे भी प्रेमियों पर खतरा मंडरा रहा है। ऐसी घटनाएं इसलिए भी अधिक चौंका रही हैं क्योंकि यह सब अब देश की राजधानी में होने लगा है और हत्यारे कम उम्र के युवा हैं जिन्हें नए विचारों से लैस होना चाहिए और जिन पर समाज को दिशा देने की जिम्मेदारी होती है। लेकिन वह खुद दिग्भ्रमित हो रहे हैं।
आखिर हम किस युग में जी रहे हैं? इस समस्या की जड़ कहां है? कुछ लोग इसे आदिम मानसिकता कहते हैं। लेकिन इसे आदिम कैसे कहें? प्राचीन काल, आदिम युग, कबिलाई या आदिवासी समाज में तो प्रेम के लिए हत्या का कोई विधान नहीं मिलता। पहले तो स्वंवर या गंधर्व विवाह लड़कियों को अपने मनपसंद वर का चयन करने का हक देते थे।
आदिवासी समाज भी प्रेमियों को विवाह के बंधन में बंधने का मौका देता है। हमारे इतिहास में तो प्रेम प्रसंगो के आख्यान भरे पड़े हैं।
ऐसी हत्याओं को ऑनर किलिंग का नाम दिया जाता है। अब इस नाम पर आपत्ति और विरोध व्यक्त किया जा रहा है जो सही भी है। इसे यह नाम कैसे दिया जा सकता है? क्या इस तरह की हत्या से इज्जत आ जाती है या बढ़ जाती है? लेकिन इन नासमझों को कौन समझाए कि किसी समस्या का समाधान हत्या नहीं होता और हत्या करने से उनका भी जीवन बर्बाद होता है और बची-खुची इज्जत भी चली जाती है। शायद प्रेम और शांति की भाषा इनके समझ से परे है।
कुछ लोग परंपरा का हवाला देते हैं। पर क्या यह एक समान चलती रहती है? परंपराएं तो बनती बिगड़ती रहती हैं। अक्ससर कोई विचार धीरे-धीरे परंपरा का रूप धारण कर लेती है और लोग उससे चिपक जाते हैं। इसके खिलाफ कोई भी तर्क उन्हें गंवारा नहीं होता। इसका खिलाफत करने वालों से इन्हें खतरा महसूस होता है। उन्हें अपने सत्ता पर चुनौती नजर आती है और इसे बचाने के लिए वह कुछ भी करने से नहीं हिचकते। ठीक यही बात तो बंगाल में भी रही होगी। वहां भी तो सती प्रथा को लोग अपना परंपरा बता रहे थे और राजा राममोहन राय ने जब इसके खिलाफ अपना आवाज बुलंद किया तो उन्हें भी समाज के ठेकेदारों का निशाना बनना पड़ा। इसी तरह विधवा विवाह आदि अन्य सामाजिक कुरीतियों के मामले में भी हुआ। आज हम उन समाज सुधारकों का गुणगान करते नहीं थकते जिन्होंने उस समय के परंपरा और रिवाज को चुनौती दी और जिन्हें इसके लिए प्रताड़ित किया गया। फिर आज जब ऐसी समस्या हमारे सामने नए संस्करण में सामने है तो फिर हम परंपरा के नाम पर कैसे इससे मुंह फेर सकते हैं?
हत्या तो आखिर हत्या ही है फिर चाहे इसे कोई भी नाम क्यों न दे दिया जाए। इसके लिए हत्यारों को कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए और इसे रोकने के लिए कुछ वैसे ही उपाय करने चाहिए जैसा कि अंग्रेजों ने सती प्रथा को समाप्त करने के लिए किया था। साथ ही ऐसे फरमान जारी करने वाले पंचायतों के खिलाफ सानूहिक जुर्माना, सरकारी मदद से वंचित करना, मताधिकार को रद्द करना जैसे कुछ कदम उठाने होंगे। साथ ही उन्हें समझाने का काम भी समानांतर रूप से जारी रखना होगा।

5 comments:

  1. blog ki duniya me aapka swagat hai.bas kabhi kbhi pagdandi se RAJmarg par bhi aajaiyega. bahut umda soch hai aapki

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  2. Achha laga....dono article umda hain...ye to jarur hi kahungi ki mujhe title bahut achha laga 1st article ka..MOHABBAT,MOONCH AUR MURDER.....apni creativity isi tarah barkarar rakhiyega....janana aur likhna do alag baate hain...jaan to koi bhi sakta hai lekin likhna kisi-kisi ko hi aata hai...aap unme se hi ek hain..main aisa sochti hun...ye comment for the sake of comment nhin hai...jo likha hai sach hai...

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  3. dost apka prayas wkai sarahniye hai. yun to honor killing koi nai samasya nahi hai aur nahi bhartiye upmahadip tak yah simit hai.duniya ke anya desho me v aise ghatnaye dekhi jarahi hai. isme koi sak nahi ki khap ne iski tamam hade par kar d hai.iskeliye khap ki samajik saikshanik pristhbhumi per v vichar karne ki aavasyakta hai.ye adunik dhanadhya barg hai jo kalm ke vajaye muchoo ko jyada tavajoo deta hai.

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  4. सही कहा अपने इस तरह की हत्या से किसी तरह इज्जत नहीं बढ़ती बल्कि बदनामी उस पर होती है ,यह इज्जत की कैसे भूख है जो अपने खून की जान लेने को प्रेरित करती है ...निसंदेह यह एक कुरीति है जिसके खिलाफ आवाज उठानी चाहिए ........

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