Saturday, September 4, 2010

पैसा है प्यारा-प्यारा, काम-काज नहीं गंवारा

कुछ दिनों पहले सांसदों के वेतन बढ़ाने को लेकर बड़ा हंगामा मचा। कुछ सांसदों ने कहा कि इस समय सांसदों के वेतन बढ़ाने से महंगाई की मारी जनता के बीच गलत संदेश जाएगा। वहीं लालू-मुलायम जैसे सांसदों ने वेतन बढ़वाने के लिए मोर्चा खोल दिया और यहां तक कह दिया कि सांसदों के वेतन बढ़ाने को लेकर वही लोग विरोध कर रहे हैं जिनके विदेशी बैंकों में पैसे जमा हैं और अंतत: उनका वेतन बढ़ ही गया। वैसे अधिकांश सांसद वेतन बढ़ाने के पक्ष में ही थे।

वेतन बढ़वाने की मांग के पीछे उनका तर्क था कि सचिवों की तनख्वाह उनसे अधिक है इसलिए उनसे पद में ऊपर होने के कारण उनका वेतन सचिवों से एक रू. ही सही अधिक तो होना ही चाहिए। हालांकि सांसदों के वेतन बढ़ाने के मुद्दे पर हर जगह इस बात की आलोचना हुई और लोगों में उनके प्रति गलत संदेश ही गया।

सांसदों का वेतन क्यों नहीं बढ़ना चाहिए और इसका विरोध इतना अधिक क्यों है? सांसदों के वेतन बढ़ाने के पक्ष में जो बातें हैं वो यह कि सांसदों को दो जगह घर रखना पड़ता है। हालांकि उन्हें दिल्ली में बंगला मिलता है। सरकारी कर्मचारियों की तुलना में उनका ऑफिस 24*7 खुला रहता है। क्षेत्र की जनता का इनके यहां आना-जाना बदस्तुर जारी रहता है। इनके स्वागत सत्कार पर भी खर्च होते हैं। इसके अतिरिक्त भी बहुत सारे खर्च हैं जो पहले के वेतन से बमुश्किल से पूरा हो पाता है। अन्य देशों की तुलना में भी यहां के सांसदों का वेतन बहुत कम है। इसलिए वेतन बढ़ना जायज है।
बाबूओं से अगर तुलना करें तो दोनों ही तो भ्रष्ट हैं। बाबू भी तो वेतन के अलावा अन्य तरीकों से कमाई करते हैं। उनके भी तो कई बेनामी संपत्तियां हैं। बिना कमीशन लिए तो वो भी काम नहीं करते। फिर उनका वेतन इतना अधिक क्यों? बाबू की तुलना में नेताओं से लोग ज्यादा नाराज क्यों हैं?

बाबूओं की तुलना में सांसदों के खिलाफ लोग शायद इसलिए हैं क्योंकि बाबू बनने के लिए कुछ योग्यता की दरकार होती है लेकिन नेता बनने के लिए केवल धनबल,बाहुबल और चाटुकारिता आदि गुणों की ही आवश्यता होती है। बाबू तो जनता से कमीशन लेते है लेकिन नेता तो इन बाबूओं से भी कमीशन ले लेते हैं और इन्हें भ्रष्ट बनाने वाले शायद नेता ही हैं। बाबू तो कुछ काम भी करते हैं लेकिन नेताओं के लिए काम करने का कोई बंधन नहीं होता है न ही उनपर किसी तरह की जिम्मेदारी होती है। संसद में चाहे हंगामे में कितना ही वक्त जाया कर लो और संसद की कार्यवाही में चाहे जितना ही पैसा जाया होता हो तो होने दो। हमारा क्या है हमें तो उसमें हिस्सा लेने पर उसका भुगतान तो मिल ही जाएगा। एक और बात यह है कि बाबू तो अपने हाथों अपना वेतन नहीं बढ़ा पाते हैं वहीं सांसद अपना वेतन अपनी मनमर्जी बढ़ाते रहते हैं।

सांसदों को वेतन के अलावा ढेरों सुविधाएं हैं जो उन्हें मुफ्त में मिलती हैं। जैसे बिजली, पानी, फोन आदि की असीमित छूट। मुफ्त में इन सुविधाओं को मिलने के कारण सांसदों के लिए इनका कोई मोल नहीं होता। एक तरफ सरकार लोगों को बिजली और पानी की बर्बादी रोकने और उन्हें बचाने की नसीहत सिर्फ जनता के लिए ही होती है सांसदों और विधायकों पर इसका कोई असर नहीं पड़ता। आम जनता के लिए सरकार इन मूलभूत सुविधाओं की कीमत बढ़ाती जा रही है और नेता इसे बेकार में बहाए जा रहे हैं। एक तरफ बिजली बचाने के लिए सरकार अर्थ ऑवर मनाने का रस्म अदायगी करती है वहीं नेताओं के बंगले रोशनी में नहाए रहते हैं। यहां अगर नेता लोग खुद पहल करके इन्हें बचाने का प्रयास करें तो जनता भी इसका अनुकरण करेगी और देश के लिए यह एक भला काम होगा।

बेशक सांसदों के वेतन बढ़ा दिए जाएं लेकिन इनकों मिलने वाली मुफ्त की सुविधाओं को बंद कर दिए जाएं जिससे इनके मोल का इन्हे पता चले। साथ ही इनके कामकाज के लिए कुछ उत्तरदायित्व भी तय हों। वेतन बढ़ाने के लिए एक आयोग बने। सांसदों को मिलने वाली सांसद निधि से होने वाले खर्च पर भी कड़ी निगरानी रखी जाए और संसद की कार्यवाही अगर सांसदों के हंगामे के भेंट चढ़ जाती है तो उस दिन का वेतन उनसे काट लिया जाए। साथ ही सांसदों को संसद की कार्यवाही में न्यूनतम उपस्थिति की एक सीमा भी तय कर देना चाहिए। मेरे ख्याल से वेतन बढ़ने से जनता को ज्यादा आपत्ति नहीं होगी अगर सांसद अपना आचरण सुधारें, हंगामें की जगह स्वस्थ बहस करें और जनता की परेशानियों के बारे में भी सोंचें। सांसदों के पास एक अच्छा मौका था कि वह महंगाई की मारी आम जनता के सामने एक मिसाल पेश करती जिसे उन्होंने गंवा दिया।

3 comments:

  1. ये अपने लिए खुद निर्णय लेते है. जनता के सेवक. जनता के मालिक. जनता के पैसे से लूट खसोट मचाने वाले .ज्यादा उम्मीद मत रखिये इनसे.

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  2. Wetan badhane ke sath 75% attendance bhee jaroori ho tatha apne kshetra ke liye kum se kum ek aisa kam ho jise logone sarha ho. Aur acharan smhita ke palan na karne par wetan me katauti bhee ho.

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