रामविलास पासवान नें राज्यसभा में पहुंचने के साथ ही ऐलान कर दिया कि वह केंद्र में मंत्री नहीं बनेंगे। ऐसा लगा कि जैसे उन्हें कोई मंत्री पद का ऑफर मिल रहा था और वह कोई बड़ा त्याग कर रहे हैं। रामविलास जी के पार्टी का लोकसभा में कोई सदस्य नहीं है। राजद के कुछ सदस्य हैं भी तो कांग्रेस नें उन्हें कोई भाव नहीं दिया तो रामविलास जी को क्यों भाव देने लगे। उन्होंने लगे हाथ यह घोषणा भी कर डाली कि 10 तारीख को महंगाई के खिलाफ बिहार बंद रहेगा।
अब यह बात समझ से परे है कि जब पिछले ही दिनों विपक्षी पार्टियों ने मिलकर भारत बंद करवाया था तब उस समय लालू और पासवान जी ने उस बंद का समर्थन क्यों नहीं किया था? जब मुद्दा एक ही था तो क्या एक दिन भी ये लोग क्षुद्र राजनीतिक स्वार्थ से ऊपर उठकर साथ काम नहीं कर सकते? और फिर महंगाई के खिलाफ सिर्फ बिहार बंद ही क्यों?
कुछ महिने पहले ही जब विपक्ष ने महंगाई के खिलाफ कटौती प्रस्ताव लाया था तब भी लालू जी ने इसका समर्थन नहीं किया था और बाद में इसके खिलाफ सड़क पर धरना-प्रदर्शन करके लोगों को परेशान किया था। कल भी इन लोगों ने लोगों को परेशान करने के अलावा कुछ नहीं किया।
कल मैं टेलीफोन से एक सर्वे कर रहा था। मेरी बात छपरा के महबूब हुसैन से हो रही थी, जो पेशे से दर्जी हैं और किसी तरह महिने में तीन हजार रूपये कमा पाते हैं। मैंने उनसे कुछ सवाल पूछे जैसे कि पिछले एक साल में आपका जीवन स्तर सुधरा है या नहीं? आगे एक साल में आपको अपने जीवन स्तर में सुघार की कोई उम्मीद है या नहीं? इस समय देश की सबसे बड़ी समस्या क्या है? आदि। उनका जवाब था कि देश में महंगाई जिस रफ्तार से बढ़ती जा रही है उससे तीन हजार रूपये में घर चलाना मुश्किल हो गया है। जीवन स्तर पहले से खराब ही हुआ है और यही हालात रहे तो आगे और बदतर ही होगी। महबूब हुसैन इस बात से भी खफा थे कि कल बिहार बंद था और वह बिना कोई काम के खाली बैठे थे। जो भी थोड़ा बहुत वह रोज कमा कर रात की रोटी का इंतजाम करते थे वो शायद कल नहीं हो पाता।
मैंने सर्वे के दौरान जितने भी लोगों से बात की उनमें अधिकांश को महंगाई ही देश की सबसे बड़ी समस्या लगी। लोग महंगाई से परेशान दिखे। लेकिन बिहार के लोगों को बंद से भी परेशानी रही और हो भी क्यों नहीं? एक ही मुद्दे पर अलग-अलग दल अलग-अलग दिन बंद का आयोजन करेंगे तो परेशानी तो होगी ही। इसके अलावा बंद अगर शांतिपूर्ण और स्वेक्षा से हो तो कोई बात नहीं लेकिन आजकल बंदी में अगर कहीं आग न लगाया जाए या तोड़फोड़ नहीं किया जाए तो फिर यह बंद कैसा?
अगर साल में दो-चार बार किसी गंभीर समस्या को लेकर जिस समस्या में जनता पिस कर रह गई है तो बंद होना जरूरी है। यह सरकार को आगाह करने और विरोध करने का माध्यम है। लेकिन इसपर सभी दलों में सहमति होनी चाहिए और जनता का हित सर्वोपरि होना चाहिए। लालू-पासवान जिस तरह की राजनीति कर रहे हैं उसमें उनकी हित ही ज्यादा नजर आता है और इस तरीके की राजनीति से उनका कोई भला नहीं होने वाला उलटे उनका नुकसान ही होगा। क्योंकि जनता सब देख रही है और जनता की नजर में ये लोग एक्सपोज ही हो रहे हैं।
अब राजनीति में एक दूसरे चलन की बात कर लेते हैं। पिछले दिनों पूर्व सांसद और मंत्री तस्लीमुद्दीन जेडीयू में शामिल हो गए। तस्लीमुद्दीन की छवि विवादास्पद रही है। विवादों के चलते उन्हें एकबार अपने मंत्री पद से भी हाथ धोना पड़ा था। उस समय जेडीयू ने उनका तगड़ा विरोध किया था। उस समय तस्मीमुद्दीन साहब बिहार के 'जंगलराज' के सिपाही थे और अब वह नीतीश कुमार के मुस्लिम वोट बैंक की सुरक्षा करने उनके सुशासन में शामिल हो गए हैं । नीतीश जी को इन दिनों भाजपा के साथ और नरेंद्र मोदी के बिहार चुनाव में संभावित प्रचार से अपने इस वोट बैंक की ज्यादा फिक्र हो रही है। इसके पहले भी राजद के कुछ लोग जेडीयू में शामिल हो चुके हैं। फिर इससे राजद और जेडीयू में क्या फर्क रह जाता है? जेडीयू तो कोई गंगा नहीं है जिसमें नहा कर लोग पवित्र हो जाएंगे और उनके सारे पाप धुल जाएंगे। राजनीति में बस सिर्फ यही नीति बच गई है कि जिससे अपना उल्लू सीघा हो वही नीति सच बाकी सब झूठ।
अब यह बात समझ से परे है कि जब पिछले ही दिनों विपक्षी पार्टियों ने मिलकर भारत बंद करवाया था तब उस समय लालू और पासवान जी ने उस बंद का समर्थन क्यों नहीं किया था? जब मुद्दा एक ही था तो क्या एक दिन भी ये लोग क्षुद्र राजनीतिक स्वार्थ से ऊपर उठकर साथ काम नहीं कर सकते? और फिर महंगाई के खिलाफ सिर्फ बिहार बंद ही क्यों?
कुछ महिने पहले ही जब विपक्ष ने महंगाई के खिलाफ कटौती प्रस्ताव लाया था तब भी लालू जी ने इसका समर्थन नहीं किया था और बाद में इसके खिलाफ सड़क पर धरना-प्रदर्शन करके लोगों को परेशान किया था। कल भी इन लोगों ने लोगों को परेशान करने के अलावा कुछ नहीं किया।
कल मैं टेलीफोन से एक सर्वे कर रहा था। मेरी बात छपरा के महबूब हुसैन से हो रही थी, जो पेशे से दर्जी हैं और किसी तरह महिने में तीन हजार रूपये कमा पाते हैं। मैंने उनसे कुछ सवाल पूछे जैसे कि पिछले एक साल में आपका जीवन स्तर सुधरा है या नहीं? आगे एक साल में आपको अपने जीवन स्तर में सुघार की कोई उम्मीद है या नहीं? इस समय देश की सबसे बड़ी समस्या क्या है? आदि। उनका जवाब था कि देश में महंगाई जिस रफ्तार से बढ़ती जा रही है उससे तीन हजार रूपये में घर चलाना मुश्किल हो गया है। जीवन स्तर पहले से खराब ही हुआ है और यही हालात रहे तो आगे और बदतर ही होगी। महबूब हुसैन इस बात से भी खफा थे कि कल बिहार बंद था और वह बिना कोई काम के खाली बैठे थे। जो भी थोड़ा बहुत वह रोज कमा कर रात की रोटी का इंतजाम करते थे वो शायद कल नहीं हो पाता।
मैंने सर्वे के दौरान जितने भी लोगों से बात की उनमें अधिकांश को महंगाई ही देश की सबसे बड़ी समस्या लगी। लोग महंगाई से परेशान दिखे। लेकिन बिहार के लोगों को बंद से भी परेशानी रही और हो भी क्यों नहीं? एक ही मुद्दे पर अलग-अलग दल अलग-अलग दिन बंद का आयोजन करेंगे तो परेशानी तो होगी ही। इसके अलावा बंद अगर शांतिपूर्ण और स्वेक्षा से हो तो कोई बात नहीं लेकिन आजकल बंदी में अगर कहीं आग न लगाया जाए या तोड़फोड़ नहीं किया जाए तो फिर यह बंद कैसा?
अगर साल में दो-चार बार किसी गंभीर समस्या को लेकर जिस समस्या में जनता पिस कर रह गई है तो बंद होना जरूरी है। यह सरकार को आगाह करने और विरोध करने का माध्यम है। लेकिन इसपर सभी दलों में सहमति होनी चाहिए और जनता का हित सर्वोपरि होना चाहिए। लालू-पासवान जिस तरह की राजनीति कर रहे हैं उसमें उनकी हित ही ज्यादा नजर आता है और इस तरीके की राजनीति से उनका कोई भला नहीं होने वाला उलटे उनका नुकसान ही होगा। क्योंकि जनता सब देख रही है और जनता की नजर में ये लोग एक्सपोज ही हो रहे हैं।
अब राजनीति में एक दूसरे चलन की बात कर लेते हैं। पिछले दिनों पूर्व सांसद और मंत्री तस्लीमुद्दीन जेडीयू में शामिल हो गए। तस्लीमुद्दीन की छवि विवादास्पद रही है। विवादों के चलते उन्हें एकबार अपने मंत्री पद से भी हाथ धोना पड़ा था। उस समय जेडीयू ने उनका तगड़ा विरोध किया था। उस समय तस्मीमुद्दीन साहब बिहार के 'जंगलराज' के सिपाही थे और अब वह नीतीश कुमार के मुस्लिम वोट बैंक की सुरक्षा करने उनके सुशासन में शामिल हो गए हैं । नीतीश जी को इन दिनों भाजपा के साथ और नरेंद्र मोदी के बिहार चुनाव में संभावित प्रचार से अपने इस वोट बैंक की ज्यादा फिक्र हो रही है। इसके पहले भी राजद के कुछ लोग जेडीयू में शामिल हो चुके हैं। फिर इससे राजद और जेडीयू में क्या फर्क रह जाता है? जेडीयू तो कोई गंगा नहीं है जिसमें नहा कर लोग पवित्र हो जाएंगे और उनके सारे पाप धुल जाएंगे। राजनीति में बस सिर्फ यही नीति बच गई है कि जिससे अपना उल्लू सीघा हो वही नीति सच बाकी सब झूठ।
रामविलास जी दोनों हाथ में लड्डु रखना चाहते है .अभी केंद्र में मंत्री नहीं बनेंगे .पर लालू और सोनिया के साथ बिहार में चुनाव लड़ सत्ता का पूर्ण सुख चाहते है.अगर यह दाव नहीं चला तो बाद ने लालू छोड़ सोनिया के शरण में जायेंगे .अभी अभी तो लालू की दया से संसद में गए है.
ReplyDelete