Sunday, July 18, 2010

मीडिया नहीं लोकतंत्र पर हमला

यह पोस्ट पब्लिश करने में थोड़ा टाइम लग गया। लेकिन मैं अपनी बात कहे बिना रह न सका। पिछले दिनों आजतक के ऑफिस पर संघ के कार्यकर्ताओं ने हमला कर दिया। संघ के कार्यकर्ता आजतक के सहयोगी चैनल हेडलाइंस टुडे पर दिखाए गए उग्र हिंदुवाद के स्टिंग ऑपरेशन से भड़के हुए थे। इस हमले को केवल एक मीडिया संस्थान पर हमले के रूप में न लेकर लोकतंत्र पर हमले के रूप में देखा जाना चाहिए। मीडिया को लोकतंत्र का चौथा खंभा कहा जाता है। हमे संविधान ने अभिव्यक्ति की आजादी दी है। इस तरह यह हमला लोकतंत्र और संविधान पर आघात करता है और भारत के नागरिक होने के नाते हमारा यह मूल कर्तव्य है कि हम इस तरीके के किसी भी हमले का पूरजोर विरोध करें।
ऐसा पहली बार नहीं इससे पहले भी इस तरीके हमले मीडिया पर होते रहे हैं। कुछ साल पहले मुंबई में स्टार का ऑफिस उपद्रवियों का निशाना बना था। लेकिन देश की राजधानी में इस तरह की पहली घटना है। आजकल देश में विरोध के नाम पर विध्वंश की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है। किसी का कहा अगर रास न आए तो उसका मुंह बंद कराने की कोशिश की जाती है।
संघ ने अपने बयान में कहा कि उनका केवल शांतिपूर्ण धरना-प्रदर्शन का कार्यक्रम था। संघ ने इस हमले को डेमोक्रेटिक बताते हुए कहा कि जिस तरह मीडिया को अपनी बात कहने की आजादी है उसी तरह उन्हें भी विरोध करने का अधिकार है। सही है आप विरोध करिए लेकिन विरोध का यह तरीका किस देश की डेमोक्रेसी में आता है। विरोध के नाम पर तोड़फोड़ का अधिकार आपको किसने दे दिया। अगर शांति पूर्ण प्रदर्शन का ही प्रोग्राम था तो फिर यह प्रदर्शन उग्र कैसे हो गया। इसकी जिम्मेवारी तो संघ की ही बनती है और इसके लिए उन्हें माफी मांगनी चाहिए।
संघ की राजनीतिक शाखा भाजपा ने भी संघ का बचाव ही किया। आजतक पर भाजपा नेता रविशंकर प्रसाद का सारा जोर बहस को मुख्य मुद्दे से भटकाकर स्टिंग ऑपरेशन की आलोचना करना था। उनका कहना था कि टीआरपी के लिए मीडिया इस तरह की चीजें दिखाती हैं। और जब आजतक पर हेडलाइंस टुडे के राहुल कंवल आए तो रविशंकर प्रसाद शो छोड़कर चले गए। इसमे तो मूल सवाल यही है कि विरोध का यह तरीका कैसे सही है? स्टिंग ऑपरेशन की भावना या सच्चाई की बात तो अलग मुद्दा है और इसका बात करना तो मुद्दे से भटकना है। अगर स्टिंग गलत भी है तब भी उन्हें हमले का हक नहीं मिलता। उन्हें पहले चैनल पर आके अपनी बात रखनी चाहिए। फिर वह चैनल पर मुकदमा कर सकते थे।
संघ अपने अनुशासन के लिए जाना जाता है। वह हमेशा सिद्धांतों की बात करता है। इमरजेंसी के समय प्रेस पर सेंसर का उसने भी विरोध किया था। मैंने सुना है कि देश में कही अगर कोई आपदा आती है तो संघ के लोग पहले पहुंचते है और राहत कार्य में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते हैं। इसी तरह अपने को पार्टी विद डिफरेंश कहने वाली भाजपा के नेता रविशंकर प्रसाद को विभिन्न बहसों में भाग लेते और दूसरों की धज्जियां उड़ाते देखा है। इनके प्रति जो भी इज्जत मन में थी वह मीडिया पर हमले पर उनके स्टैंड से कम गया।
दूसरा मुझे इस बात का भी दुख है कि इस खबर को प्रिंट मीडिया ने ज्यादा तवज्जो नहीं दी। जैसे यह हमला केवल इलेक्टॉनिक मीडिया पर था। दूसरे के घर पर हमला होता है तो होने दो अपना घर तो अभी सुरक्षित है। कुछ इसी तरह का रूख अखबारों ने रखा। दूसरे दिन हिंदुस्तान में यह खबर लीड थी कि भारत में ढाई करोड़ की मर्सीडिज बिकेगी। लेकिन हमले वाली खबर सिंगल कॉलम में बीच में कहीं छुपा था और पूरी खबर पांचवें पन्ने पर नीचे लगाया गया था। इस पर न तो कोई संपादकीय और न तो कोई लेख छापा गया। यही हाल हिंदुस्तान टाइम्स और टाइम्स ऑफ इंडिया का था। यह बात समझ से परे है कि अगर ढाई करोड़ की कार अगर भारत में बिकती है और दस लोगों ने इसके लिए बुकिंग करवा भी ली है तो इससे कितने लोगों को फर्क पड़ता है। जिन लोगों की खबरें अखबार ने छापा है वो लोगो तो उनकी अखबार पढ़ते भी नहीं होंगे। लेकिन मीडिया पर हमला वाली खबर से भले अभी लगे न लगे लेकिन इससे पूरा देश प्रभावित होगा। मीडिया के अभियान की वजह से ही बहुत सारे घोटाले सामने आए हैं और बहुत सारे केस में दोषी मीडिया की सक्रियता के कारण ही दोषी को सजा मिल पाई है। अगर मीडिया का मुंह बंद करने की कोशिश हुई तो देश में भ्रष्टाचार और बढ़ेगा। फिर बात-बात में कानून हाथ में लेने की प्रवृति भी खतरनाक है। इससे लोकतंत्र पर लाठी धारी भीड़ तंत्र का अधिकार हो जाएगा। जो बात-बात में हमें सिखाएगा कि हमें क्या करना चाहिए और क्या नहीं।

3 comments:

  1. बिल्कुल सही कहा आपने ये हमला मीडिया पर नहीं अपितु लोकतंत्र पर है ..
    हमारा देश लोकतान्त्रिक पद्धति का अनुसरण करता है तब उसके मुताबिक इस
    प्रकार के हमलो की तीखी प्रतिक्रिया होनी चाहिए थी जबकि ऐसा कुछ नहीं हुआ .
    उस समय केवल आजतक के अलावा और किसी चैनल और अख़बार ने इस खबर को खास
    महत्व भी नहीं दिया ............सभी तमाशा देखते रहे शायद वो इस बात का इंतजार कर
    रहे है कि जब उनके दफ्तर पर हमला होगा तब सक्रिय होंगे ......जहा तक विरोध का
    सवाल है तो शांति पूर्ण तरीके से भी हो सकता है .........अच्छी प्रस्तुति .........

    ReplyDelete
  2. ha yah sach hai ki media par hamala loktantra keliye shubh sanket nahi hai.aise hamale pahale bhi hote rahe hai jinki alochana karni chahiye.par media jo khud natikta kapath padata hai se bhi yah sochana chahiye ki vah khud kitana naitik hai.

    ReplyDelete