Monday, July 12, 2010

फुटबॉल के बहाने

फुटबॉल के महाकुंभ का समापन हो गया। यह वर्ल्ड कप
शकीरा के वाका-वाका गीत और जर्मनी के ऑक्टोपस पॉल
के लिए यादगार रहेगा। इस विश्व कप में स्पेन के रूप में एक विश्व को एक नया चैंपियन मिला।
विश्व कप शुरू होने के पहले जो खिलाड़ी हीरो थे,
वो सब जीरो साबित हुए। मेसी, काका, रोनाल्डो, रूनी जैसे फुटबॉल के सुपर स्टार का फ्लॉप हो गए। जबकि इन सबों की लोकप्रियता को पीछे छोड़ते हुए ऑक्टोपस
पॉल बाबा हीरो बन गए।
पॉल बाबा अब किसी परिचय के मोहताज नहीं रह

गए हैं। अखबारों से लेकर टीवी चैनल सभी उन्हीं के
रंग में रंगे हैं। उनकी भविष्यवाणियां सौ फीसदी
सही साबित हुई हैं। एक तरफ उनके
लाखों दीवाने हैं तो दूसरी ओर जर्मनी
वाले उनके खून के प्यासे बन गए हैं।
सच्चाई आखिर जो भी हो इतना तो तय
हो ही गया कि जो पश्चिमी देश हमें सपेरों
का देश कहकर हमारी खिल्ली उड़ाते थे वो
भी हमसे कम नहीं हैं।
खेल के आयोजन के समय इस बात का दुख
हमें सालता रहा कि हमारा देश इस महाकुंभ
में डुबकी क्यों नहीं लगा पाया। हर बड़े खेल के आयोजन में जब हमारा देश पिछड़ जाता है तो हम थोड़ी देर दुख प्रकट करते हैं। हम कहते हैं कि हमारे देश की एक अरब आबादी में से इतने खिलाड़ी भी नहीं निकल पाए कि देश को क्वालिफाई करवा सकें या ओलंपिक में मेडल दिलवा सकें। फिर हम इसके लिए क्रिकेट को कोस लेते हैं। जैसे क्रिकेट ही इस समस्या का जड़ हो और क्रिकेट इन खेलों का शत्रु हो। इसके बाद हम चार साल तक चुप बैठ जाते हैं।
किसी भी खेल में पिछड़ने का कारण किसी दूसरे खेल को बताना सही नहीं है। ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड की आबादी हमारे देश से काफी कम है। ये दोनो देश क्रिकेट के पुराने खिलाड़ी हैं। यहां भी क्रिकेट की लोकप्रियता किसी से कम नहीं है। बावजूद इसके कि दोनो देश फीफा वर्ल्ड कप में भी भाग लेते हैं। किसी भी खेल में किसी को इंट्रेस्ट नहीं है तो उसे आप जबरदस्ती नहीं उस खेल को देखने को कह सकते हैं। ठीक उसी तरह जैसे जर्मनी, इटली या फ्रांस वाले को क्रिकेट के बारे में शायद ही कुछ पता हो और आप उन्हें क्रिकेट देखने को नहीं कह सकते। भारत में प. बंगाल, गोवा और केरल में फुटबॉल लोकप्रिय है और इनकी आबादी भी फुटबॉल खेलने वाले कई देशों से अधिक होगी फिर क्यों नहीं ये राज्य मिलकर एक ऐसी टीम खड़ी कर पाते हैं जो वर्ल्ड कप में क्वालिफाई कर सके। अब तो इसके लिए विदेशी प्रशिक्षक भी रखे जा रहे हैं। भारत में फुटबॉल तभी ज्यादा लोकप्रिय हो सकेगा जब हम बड़े इवेंट में भाग ले सकें।
अगर ओलंपिक की बात करें तो हमें हॉकी से ज्यादा उम्मीदें रहती हैं। लेकिन इन उम्मीदों पर पानी फिर जाता है। अगर हम टीम इवेंट की जगह व्यक्तिगत प्रतिस्पर्धा पर ज्यादा ध्यान दें तो हमें ज्यादा मेडल मिल सकता है क्योंकि टीम इवेंट में एक मेडल के पीछे ग्यारह खिलाड़ी होते हैं जबकि अन्य इवेंट जैसे टेनिस, बैडमिंटन, तीरंदाजी, दौड़ आदि में एक या दो खिलाड़ी मिलकर कई मेडल जीत सकते हैं। जैसे माईकल फेल्प्स को ही लें वह आठ-आठ स्वर्ण अकेले जीत लेते हैं। हमारा पड़ोसी देश चीन भी फुटबॉल में कुछ खास नहीं कर सका है लेकिन ओलंपिक में उसका दबदबा रहता है। इसका कारण है कि वहां सिंगल इवेंट पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है। हमें भी भीड़ के पीछे नहीं भागना चाहिए। जहां जिस खेल में लोगों की रूचि हो वहां उसे ही बढ़ावा देना चाहिए। अगर हर राज्य अपने यहां एक-एक खेलों को ही बढ़ावा देने में लग जाएं तो हम कई मेडल जीत सकते हैं। जैसे हरियाणा में बॉक्सिंग का क्रेज बढ़ता जा रहा है और इसे वहां बढ़ावा भी दिया जा रहा है। इसी तरह अन्य राज्यों को भी यह मॉडल अपनाना चाहिए।
हमारी यह मानसिकता है कि हम ऐसा सोंचते हैं कि देश में जो भी क्रांतिकारी हो, खिलाड़ी हो या समाज सुधारक हो वह हमारे पड़ोस में हो। हमारे बच्चे तो डॉक्टर, इंजीनियर बनें। हम कोई भी अच्छी पहल खुद से नहीं करना चाहते हैं। अब ऐसे में हम कैसे मेडल जीतने की सोंच सकते हैं।

3 comments:

  1. andhavishash ke mamale me pashchim ke log mahse jyada age hai .vo koi bhi jiv jantu ko khoj sakate hai.ye bat alag hai ki ham unke paichhlaggu ho rahe hai.rahi bat khel ki to hamare yaha khel kepichhe bhin bahut khel ho ta hai.us khel me jo jitata hai vahi khel khel banata hai baki sare khel khel ban kar rah jata hai.

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  2. Hariye na himmat, bisaariye na Raam!
    Octopus Baba ne mujhe bataya hai ke Sn 3942 ka WC India jeetega!!!

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  3. ji bilkul i m satisfied bid ur this thought,lekin ap hm siway salh maswara k alawa kya kr skte hai,paschimi sbhyatya khud kuch kre to fashion gar hum hindustani kuch kre to dhong,aisa meri samajh se isliye ho rha hai qki hmlog aarthik taur per unper khud ko aasrit mante hai,warna kis ki mazal thi ki is sone ki chiriya ke uper koi ungali v utha pata,khair aj v hm 1947 se jyada partantra hai,jitne shayad 1947 k pehle naa the,km se km 1947 k pehle hm bhartiye the parntu ab to hm indian bhartiye aur hindustani me bat chuke hai.........sochiye khair baat niklegi to dur tk jayegi aur kuch v nae ho payega,by d way ur thought n way of representation make me think,thanks

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