Saturday, December 25, 2010

सरकार, आखिर कुछ करते क्यों नहीं?

पिछले दिनों प्याज का दाम सातवें आसमान पर पहुंच गया। मेरे एक मित्र ने मजाक में ही कहा कि डायटिंग करने का यही सही वक्त है। महंगाई का मारा आम आदमी बेचारा कर भी क्या सकता है। आम आदमी के सरकार राज ने पहले ही दाल को आम आदमी की थाली से गायब कर दिया। पहले तो कहते थे कि दाल रोटी खाओ प्रभु के गुण गाओ लेकिन यह तो अब कहावत बन कर ही रह गया है। गरीब आदमी प्याज और रोटी खाकर ही संतुष्ट हो जाया करता था लेकिन अब तो प्याज खाना भी विलासिता हो गया है। अब तो लहसुन, टमाटर आदि सब्जियां भी प्याज की ही राह पर चल रहे हैं।

सरकार को देखिए कृषि मंत्री जहां फसलों की बर्बादी को इसकी वजह बताते रहे वहीं नेफेड के अधिकारी इससे इन्कार करते रहे। दिल्ली सरकार ने जमाखोरों को एक दिन का मोहलत ही दे दिया कि जितना कालाबाजारी कर सकते हो कर लो कार्यवाही तो कल से की जाएगी। वहीं प्रधानमंत्री ने कृषि मंत्री को चिट्ठी लिख कर जानना चाहा कि महंगाई की वजह क्या है? यह बात समझ से परे है कि संचार क्रांति के युग में आम जनता के हित से जुड़े मसले पर कृषि मंत्री से सीधे बात नहीं की जा सकती थी और उन्हें सख्त निर्देश नहीं दिए गए? इसमें चिठ्ठी लिखकर जवाब का इंतजार क्यों किया गया? आज हिंदुस्तान में भी यह खबर छपी थी कि 'पीएम ने पूछा प्याज महंगा क्यों'। सवाल-जवाब का सिलसिला आखिर कब तक चलता रहेगा। सरकार आखिर कब कुछ करेगी या करेगी भी कि नहीं?

डेढ़-दो साल पहले जब महंगाई बढी थी तो कहा गया कि खराब मानसून की वजह से ऐसा हुआ है लेकिन दो साल बाद भी महंगाई पर लगाम क्यों नहीं लगा। इस बार तो बारिश भी अच्छी हुई और फसल भी अच्छा हुआ। क्या सरकार के पास ऐसा कोई सिस्टम नहीं है जिससे पता चले कि फसलों के स्टाक कितने हैं उसकी मांग कितनी है और उसकी आपूर्ती कितनी है। आखिर ऐसा क्यों होता है कि जब कीमतें आसमान छू जाती हैं तब सरकार निर्यात पर रोक लगाती है और आयात करने की सोंचती है। कहीं इसमें भी तो कोई बड़ा घोटाला नहीं छुपा है?

अगर सरकार के पास कोई सिस्टम नहीं है तो वह इसे डेवलप करने का प्रयास क्यों नहीं करती। आखिर कहीं तो फसलें इतनी अधिक हो जाती हैं कि उन्हें रखने या ढोने पर ही अधिक खर्च हो जाता है और वह खेत में ही पड़ी-पड़ी या फिर गोदामों में सही रख-रखाव के अभाव में सड़ जाती हैं और कहीं तो उनकी किल्लत ही रहती है। इससे तो नुकसान किसानों और आम आदमी को ही होता है। कुछ मुट्ठी भर बिचौलिए सारा फायदा उठाते हैं और सारा सरकारी तंत्र इन्ही मुट्ठी भर बिचौलियों की मुट्ठी में कैद रहते हैं।

कृषि मंत्री के रूप में शरद पवार जी की उपलब्धि क्या रही है?पवार साहब सिर्फ भविष्यवाणियां करते हैं। दाम बढ़ने वाली भविष्यवाणियां सही हो जाती हैं और घटने वाली गलत। आज ही एक कार्टून देखा जिसमें एक व्यक्ति कह रहा है कि कृषि मंत्री के बयान में प्याज से ज्यादा परतें होती हैं। पवार साहब के गृह राज्य में ही रोज जाने कितने किसान आत्महत्या कर लेते हैं। मगर उनका क्या किसान मरते हैं तो मरें अपनी बला से वह तो ऐसे ही अपने स्टाइल में कृषि (मंत्रालय) और क्रिकेट की जिम्मेदारियां निभाते रहेंगे। आखिर किसकी हिम्मत है कि उनसे इस्तिफा ले ले या उनका मंत्रालय बदल दे आखिर सरकार भी तो चलानी है और आखिर आम आदमी के लिए कहीं कोई मंत्री बदले जाते हैं। कभी प्याज और टमाटर के लिए सरकार बदल दी जाती थी, लेकिन अब लोग अपनी ही परेशानियों से इतना अधिक पक चुके हैं कि सब कुछ नियति मान कर स्वीकार कर लेते हैं। शायद आम आदमी के मन में यह सवाल चल रहा होगा कि 'आम-आदमी के इस सरकार राज हमें क्या मिला' और सरकार, हमारे लिए कुछ करते क्यों नहीं?