Tuesday, August 2, 2011

पहले खेल भावना या पहले जीत

भारत-इंग्लैंड टेस्ट सीरिज के दूसरे मैंच में बेल प्रकरण ने एक नया विवाद को जन्म दे दिया है। चर्चा का विषय है कि खेल भावना जरूरी है या खेल में जीत जरूरी है। कल रात स्टार न्यूज एक प्रोग्राम चला रहा था जिसमें बताया जा रहा था कि ऐसी दरियादिली किस काम की है। टीवी पर गेस्ट विनोद कांबली धोनी को कोसने के साथ सवाल उठा रहे थे कि क्या अगर इसी तरह की घटना विश्व कप के फाइनल में होता तो क्या भारतीय कप्तान ऐसी दरियादिली दिखाते?

शो के दौरान पूर्व भारतीय कप्तान सौरव गांगुली पर भी सवाल खड़े किए। सौरव ने भारतीय टीम के फैसले का समर्थन किया था। सौरव के बारे में कहा गया कि एक बार उन्होंने स्टीव वॉ को टॉस के लिए इंतजार करवाया था। सौरव जब लॉर्डस में भारत के जीत के बाद अपनी टी शर्ट घुमा रहे थे तब उनकी खेल भावना कहां गई थी। सौरव अभी ऐसा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि वो अब खेल नही रहे हैं। कांबली का कहना था कि एक बार जब अम्पायर ने ऑउट दे दिया तो दे दिया इसके बाद किसी को वापस बुलाने का सवाल ही नहीं उठता।

किसी भी मुद्दे की तरह इसपर भी लोगों के राय अलग-अलग हो सकते हैं। आखिर टेस्ट क्रिकेट में नं. वन रहने के बाद टीम इंडिया की लगातार दो मैंचों में शर्मनाक हार हुई है। ऐसी हार को पचाना मुश्किल हो रहा है। लोगों को लग सकता है कि भारत को भी अपनी बादशाहत बचाने के लिए साम,दाम,दंड और भेद की नीति अपनानी चाहिए। आखिर जंग में तो सब कुछ जायज होता है। ऑस्ट्रेलिया भी जीत के लिए किसी भी हद तक जा सकती है। क्या भारत की जगह इंग्लैंड होता तो क्या इस तरह का फैसला लेता? इंग्लिस मीडिया ने भी भारत के फैसले को बेतुका बताया है। इंग्लैंड के पूर्व कप्तान नासिर हुसैन भारतीय टीम के फैसले की सराहना तो करते हैं लेकिन यह भी कहते हैं कि वो रहते तो शायद ही ऐसा करते।

लेकिन खेल और जंग में अंतर होता है। खेल सिर्फ मनोरंजन के लिए ही नहीं खेला जाता। आजकल को क्रिकेट कूटनीति का भी जरिया है। क्रिकेट को जेंटलमैन गेम कहा जाता है। क्रिकेट दो देशों के रिश्तों में सुधार में भी अहम भूमिका निभाता है। याद कीजिए जब अटल जी के प्रधानमंत्री रहते हुए भारतीय टीम पाकिस्तान जा रही थी। अटल जी ने टीम इंडिया से कहा था खेल भी जीतिए और दिल भी। उस समय भारत-पाक रिश्तों में जमी बर्फ पिघलनी शुरू हो गई थी। क्या कोई कल्पना कर सकता था कि भारत-पाक मैच पाकिस्तान में हो और कोई पाकिस्तानी तिरंगा लहराए।

किसी भी बात को हम सही या गलत ‘यूं होता तो कैसा होता’ के आधार पर नहीं ठहरा सकते। किसी भी फैसले का फायदा या खामियाजा तो कभी न कभी उठाना ही पड़ता है लेकिन फैसला तो आप इसे देखकर नहीं करते। उस परिस्थिति में जो सही होता है उस आधार पर एक स्टैंड लेना पड़ता है और उस स्टैंड पर कायम भी रहना चाहिए। अब यूडिआरएस सिस्टम को ही लें। वर्ल्ड कप में जब एलबीडब्ल्यू इसके तहत था तो इसका भारत को नुकसान ही हुआ लेकिन इंग्लैंड टेस्ट में एलबीडब्ल्यू इसमें शामिल नहीं था और इसका भी नुकसान भारत को हुआ। ये तो चलता ही रहता है।

वास्तव में देखा जाए तो कोई टीम सही मायने में तभी विजेता मानी जाएगी जब वह मैच के साथ-साथ दिल भी जीते। इसलिए भारतीय टीम का बेल को वापस बुलाने का फैसला सही था। रही बात स्टार न्यूज के हाय-तौबा मचाने की तो उन्हें उस समय को याद करना चाहिए जब ऑस्ट्रेलिया ने गलत तरीके से भारत को हराया था, तब अंपायर ने पोंटिग से पूछ कर भारतीय खिलाड़ी को ऑउट दिया था। तब स्टॉर वालों ने पोंटिग को न जाने क्या-क्या भरा बुरा कहा था। अगर जीत में सब कुछ जायज है और अंपायर ने अगर ऑउट कह दिया तो ऑउट तो उस समय पोंटिग भी सही थे। स्टॉर के लिए भावना कोई मायने नहीं रखती और रखें भी कैसे जब न्यूज चैनल हो कर न्यूज वैल्यू का खयाल ही नहीं करते तो दूसरी चीजों में कैसे उम्मीद की जा सकती है।

Saturday, March 19, 2011

होली- कुछ यादें कुछ गीत

आठ साल हो गए गांव की होली में शरीक हुए... अब तो सिर्फ कुछ यादें ही बची हैं... बचपन में होली का हुड़दंग और बच्चों की टोली के साथ होली खेलने निकलना... लोगों पर रंग डालना और होली है का जयघोष.. ऐसे लोग खास निशाना बनते थे जो रंग से दूर भागते थे।

घर में तरह-तरह के पकवान जैसे पुए,कचौड़ी,आलूदम,दहीबड़े और न जाने क्या-क्या... होली में घर से दूर रहते हुए आखिर धीरे-धीरे कुछ पकवान बनाना सीख ही गया लेकिन इसमें मां के हाथों का जादू और गांव की सोंधी खुशबू नहीं ला पाया...

हमारे गांव में होली के एक दिन पहले लोग धूल और मिट्टी खेलते हैं इसे धुड़खेल कहा जाता है, होली के रोज दिन में रंग खेलते हैं और शाम में नहा धोकर लोग अबीर खेलने निकलते हैं... बड़ों के पैर पर अबीर रखकर उनका आशीर्वाद लिया जाता है और छोटों,मित्र और हमउम्रों के गाल में अबीर लगाया जाता है....

एक बात और अखड़ती है वह है जोगीरा और होली गीत... जोगीरा में तो गांव के लोगों के बारे में और समकालीन घटनाओं को ही गीतों में पिरो दिया जाता था... शुरू और अंत में जोगीरा सर रर, सर रर रे बराबर सर रर... महीने भर पहले से ही होली गाना शुरू हो जाता है... गीत शुरू में धीमा होता है और धीमें-धीमें आगे बढ़ता है और अंत तक यह काफी जोशीला हो जाता है... इसे देखना और सुनना काफी अच्छा लगता है... अगर आप नहीं भी गा रहे होते हैं तब भी बदन बरबस थिरक उठता है...

होली गीत कई तरह के होते हैं.... इसमें भक्ति, रामायण, महाभारत, कृष्ण लीला, श्रृगांर प्रधान गीत होते हैँ... सबसे पहले भक्ति गीत से शुरुआत की जाती है... कुछ गीत प्रश्नोत्तर शैली में होते हैं.. ऐसा ही एक होली गीत है जो किसी देवस्थान में जाकर सबसे पहले गाया जाता है...


मंदिर के खोलो किवाड़ माता ठाढ़े दुनिया दर्शन को
मंदिर के खोलो किवाड़ माता ठाढ़े दुनिया दर्शन को
ठाढ़े दुनिया दर्शन को हो ठाढ़े दुनिया दर्शन को
मंदिर के खोलो किवाड़ माता ठाढ़े दुनिया दर्शन को
काथि के मंदिरा बने हो काहे के मंदिरा बने
कथि लगे केवाड़, माता ठाढ़े दुनिया दर्शन को
मंदिर के खोलो किवाड़ माता ठाढ़े दुनिया दर्शन को
पत्थर के मंदिरा बने हो पत्थर के मंदिरा बने
चंदन लगे केवाड़ माता ठाढ़े दुनिया दर्शन को
मंदिर के खोलो किवाड़ माता ठाढ़े दुनिया दर्शन को
कहे ल मंदिरा बने हो कहे ल मंदिरा बने
काहे लगे किवाड़ माता ठाढ़े दुनिया दर्शन को
मंदिर के खोलो किवाड़ माता ठाढ़े दुनिया दर्शन को
पूजा ल मंदिरा बने हो पूजा ल मंदिरा बने
फाटक लगे किवाड़ माता ठाढ़े दुनिया दर्शन को
मंदिर के खोलो किवाड़ माता ठाढ़े दुनिया दर्शन को

एक गीत कृष्ण लीला से...


कहां अटके, कहां अटके बनवारी सखी हो कहां अटके
कहां अटके, कहां अटके बनवारी सखी हो कहां अटके
खोजत फिरत मां तू जशोदा, घर-घर करत पूछारी
कारण कौन नाथ नहीं आए कंषन के डर भारी
कहां अटके, कहां अटके बनवारी सखी हो कहां अटके
झुंड के झुंड सखि सब आए, पढ़त जशोदा के गारी
मोर मटुकिया फोड़ दियो है, फाड़ दियो तन साड़ी
कहां अटके, कहां अटके बनवारी सखी हो कहां अटके
बिलखल-बिलखल मोहन आए, नैना नीर बहाए
मोर मुरलिया छीन लियो है सखियन सब मिल सारी
कहां अटके, कहां अटके बनवारी सखी हो कहां अटके
आचल ओट हंसे सखियन सब, देखो प्रभु की चतुराई
सूरदास प्रभु तुमरे दरस को तुम्हीं जीते हम हारी
कहां अटके, कहां अटके बनवारी सखी हो कहां अटके
अंत में सबों को होली की ढेर सारी शुभकामनाएं... दुनिया से भय,भूख और भ्रष्टाचार की होलिका जले और लोगों का जीवन नए-नए रंगों से रंगीन हो... होली मुबारक।