आज होली है, लेकिन होली है... या बुरा न
मानों होली है का शोर अब तक सुनने को नहीं मिला है. होली को लेकर कोई उमंग नहीं
है. कोई फीलिंग नहीं है. न तो पारंपरिक होली गीत सुनने को मिल रहे हैं न ही फिल्मी
होली गीत ही. पहले जहां महीने पहले से हवाओं में होली के गीत घुलने लगते थे अब तो
होली के दिन भी कम ही सुनने में मिलता है. इनकी जगह अब बेबी डॉल ब्लू आईज और आज ब्लू है पानी ने ले लिया है. ऐसा
नहीं है कि गांव से दूर होने के कारण ऐसा लग रहा है. पिछले साल तक होली पर गांव की
बहुत याद आती थी, लेकिन वर्षों बाद जब पिछले साल गांव में होली के पर्व में शरीक
होने का मौका मिला तो सब कुछ बदला-बदला सा था. अब वहां भी पहले की तरह होली नहीं
गाया जाता. अब होली गाने वाले भी नहीं रहे. न तो पहले की तरह रंग और अबीर खेला
जाता है. सब लोग अपने में ही सिमट से गए हैं. दिल्ली और एनसीआर में तो रंग से
ज्यादा पानी डालते हैं और दोपहर तक होली समाप्त, लेकिन हमें तो बचपन से आदत रही है
रंग के बाद शाम में अबीर खेलने की. बड़ों के पैर पर अबीर रख कर आशीर्वाद लेने की
और बच्चों को अबीर का टीका और हमउम्रों के गाल में अबीर मलने की.
हां होली के कुछ दिनों पहले से स्टूडेंट्स
जरूर दिख जाते हैं रंगे हुए. तो क्या हम नौकरीपेशा हो गए या हमारी उम्र बीत गई
इसलिए ऐसा लग रहा है ? मैंने अपने
भतीजे-भतीजियों से भी फीडबैक लिया. पता चला वो लोग भी होली की मस्ती से वंचित है. आखिर
कुछ तो है. आखिर इतना कैसा बदल गया
त्योहार. ये सिर्फ होली की ही बात नहीं है. दशहरा, दीवाली आदि सभी पर्वों पर पहले
जैसा उत्साह नहीं रह गया. पहले सुनने में आता था कि पर्व तो पैसे वाले के लिए है,
लेकिन अब लगता है कि लोग आर्थिक रूप से जितने संपन्न होते जा रहे हैं, सांस्कृतिक
रूप से उतने ही विपन्न होते जा रहे हैं. मुझे याद नहीं है कि आज से दस साल पहले हम
लोग हैप्पी होली कह कर किसी को शुभकामनाएं देते थे. बस रंग लगाया और जोर से
चिल्लाते हुए होली है.... कितनी खुशी मिलती थी. यकीन मानिए हैप्पी होली के आप
लोगों को जितने भी मैसेज दे दीजिए वो फीलिंग नहीं आ पाती है. वो खुशी नहीं मिलती
है. क्या होली सिर्फ एक दिन की छुट्टी भर रह गया है या नशा करने वालों को नशे में
डूबने का दिन. खैर छोड़िए इन बातों को कुछ होली के गीतों का मजा लेते हैं. गांव
में किसी मंदिर में जाकर होली गाया जाता है तो पहले देव को समर्पित एक गीत होता
है. जैसे मंदिर के खोलो केवाड़ या तुम निकट भवन पर बैठ भवानी. ऐसा ही एक गीत ये भी
है..
आए-आए देव के द्वार दर्शन करने को -2
हम सब दर्शन करने को
हम सब दर्शन करने को
कोई नहीं पाए पार दर्शन करने को
आए-आए देव के द्वार दर्शन करने को.
सुर नर मुनि सब चकित भए हो
सुर नर मुनि सब चकित भए
कोई नहीं पाए पार दर्शन करने को
आए-आए देव के द्वार दर्शन करने को
अष्ट सिद्धि नव निधि के दाता
महिमा अगम अपार दर्शन करने को
आए-आए देव के द्वार दर्शन करने को.
इसके बाद रामायण या महाभारत के प्रसंग या
श्रृंगार रस के कई गीत गाए जाते हैं और सब से अंत में सदा आनंद रहे यह द्वारे मोहन
खेले होली हो. सुनने का मजा ही कुछ और है.
वाकई ये सोचनीय है. हम परंपराओं और मूल्यों को भूलते जा रहे हैं.
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